Monday, May 22, 2017

बदनाम में हो चला





आज होंठ मिल ही गए नशे से, ग़ालिब

और, बदनाम में हो चला

होंठ मिले जाम से
 तो पता चला की नशा क्या है

तब आई वो
इतराते, मुस्काते
तो अखियां छलक गई
और दिल काँप उठा

उसकी नज़ाकत
उसका प्यार
और उसके ज़हरीले धोखे
नज़र मुझे आए

फिर  भी करता हूँ प्यार उससे
गहरा,  जितना है ये नशा
घुली है वो नस -नस में मेरी
जैसे  हो ज़हर

पीउँगा तब तक,जब तक  होश न रहे
और
आग़ोश में न ले वो मुझको

पिऊंगा में
टोको न कोई, रोको न कोई

आएगी वो एक दिन
जनाज़े पे मेरे
देखूँगा में तब
क्या लिपटी होगी वो कोरे सफ़ेद में
या होगी वो लिपटी रंगीन गुलाल में

Copyright @ Ajay Pai  22nd May 2017



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