Monday, June 26, 2017

बेरंग बूँदें - Hueless drizzles

दोपहर के तीन बजे थे
और छत पे था कोई खटखटाता
देखा तो थी बूँदें बारिश की
टिप टिप सी कूद रही थी

असमय आनेवाली ये बरसात
ले गयी मुझे वापस मेरे बचपन की गलियों में 
नफरत है मुझे इन बेरंग बूंदों से 
याद दिलाती है ये मुझे टूटी हुई छत की 
और सीली सीली सी  दीवारों की 
जो सूज गई थी गरीबी की कहर से 

कभी बिमारी ले आती थी अपने साथ ये 
या  कभी भूखापेट सुलाकर -
चली जाती थी दबे पाँव  
बिजली जब कौंध जाती थी 
सहम के छुप जाता था में 
माँ के फटे हुए आँचल में 
खुद को बचाते उन काले राक्षसों से 

आज ये बारिश की बूँदें फिर ताज़ा 
कर गई वो यादें, पर आज तो अफ़सोस ये है की 
न रही माँ और न उसका आँचल |


Copyright @ Ajay Pai  26th June 2017
Image courtesy: Pexels


0 comments: